कहाँ और कैसे छूट गये
मेरे जीवन के महाबरी रंग
कितने अरमानों से सौंप गये थे
मेरे पास अमानत की तरह
पर इतना ही चलना पड़ा था
मुझे बार-बार अकेले ही
कि इसे तो
लहू-लुहान होना ही था
रंगों की जगह ।
कहाँ और कैसे छूट गये
मेरे जीवन के महाबरी रंग
कितने अरमानों से सौंप गये थे
मेरे पास अमानत की तरह
पर इतना ही चलना पड़ा था
मुझे बार-बार अकेले ही
कि इसे तो
लहू-लुहान होना ही था
रंगों की जगह ।