Last modified on 17 फ़रवरी 2020, at 22:19

इन्सां ख़ुदा हो गये / आनन्द किशोर

मोम जैसे पिघलकर फ़ना हो गये
जबकि पत्थर के इन्सां ख़ुदा हो गये

कल तलक थे वो क्या आज क्या हो गये
प्यार के देवता बेवफ़ा हो गये

मौत की छाँव में क्यूँ पले ज़िन्दगी
बारी बारी से अपने जुदा हो गये

लाश मुन्सिफ़ के कमरे में मौजूद थी
क़त्ल के क्यूँ निशाँ गुमशुदा हो गये

आसमाँ पर ये सन्नाटा क्यूँ है भला
चाँद-तारे कहाँ अब फ़ना हो गये

दरमियाँ जब नहीं था कोई फ़ासला
रास्ते जाने फिर क्यूँ जुदा हो गये

पूछते ख़ुद से हैं हम यही बात इक
फ़र्ज़ ' आनन्द' क्या सब अदा हो गये