Last modified on 17 जून 2020, at 16:43

इन्हीं संकेतों से / श्रीधर करुणानिधि

जब नष्ट हो जाएँगे
सारे शब्दकोश
और चुक जाएँगी
सारी की सारी भाषाएँ
तब भी पुकार के लिए
बची रहेगी गुंजाइश
इक्के-दुक्के शब्द जैसे संकेतों के सहारे

तुम्हारे हिलते हाथों को
मुड़कर ज़रूर देखेगा
वो उड़ कर जाता पनडुब्बा
हो सकता है
लौट आएँ वे प्रवासी पंछी
इस उदास झील में ...

अपने अकेलेपन में संकेतों के सहारे ही
कोशिश करो तो
लौट सकता है प्यार
कोपलों की शक्ल में
सूखे पेड़ों की शाखों पर ...

रूठ कर गईं चीज़ें
एक-एक कर आ सकती हैं वापस
अगर संकेतों में ही सही
तुम पुकार सको ।