इन आँखों के आगे
चलचित्रों से जीवन के सब दृश्य जा रहे भागे
कैसी-कैसी दिव्य मूर्तियाँ
आयी थीं तेरी विभूतियाँ
दो दिन जिनके साथ हो लिया
मैं सब सुध-बुध त्यागे!
कितनी बार सजी मधुशाला
नव-नव सुर में घूमा प्याला
किन्तु गया सँग पीनेवाला
तोड़ स्नेह के धागे
कौन सूत्रधर छिपा गगन में
बदल रहा है पट क्षण-क्षण में
कुछ न कहीं यदि, क्यों इस मन में
प्यास मिलन की जागे!
इन आँखों के आगे
चलचित्रों से जीवन के सब दृश्य जा रहे भागे