हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
इब की छोरी न्यूं बतलाई
काली वायल मंगावांगे
पाइआ पाइआ गेरैं सितारे
गोट्यां की लार लगावांगे
इब की बहुअड़ न्यूं बतलाई
भार्या दाम्मण सिलावांगे
सारी बेबे कट्ठी हो कै
ठोक्कर मार दिखावांगे
इब के छोरे न्यूं बतलावे
आपी नाम कटावांगे
बूठ्यां नै तो घाला नौकरी
कुरसी मेज बिछांवांगे
इब के बूड्ढे न्यूं बतलाए
आपां नौक्कर चाल्लांगे
घणे दिनां मैं छूट्टी आवैं
बुड्ढिआं ने प्यारे लागांगे
दोहरी तो हम धोत्ती बांधां
गाभरूआं ने गोड्डांगे
इब की बूड्ढी न्यूं बतलाई
नाभी सूट सिमावांगे
धोले तो हम ओढ़ैं डपट्टे
कालिज पड्ढण जावांगे
जो मेरी बेबे पै चाल्यां नां जागा
रिकसा भाड़ा कर ल्यांगे
हाथ्यां मैं हम झोला ले लैं
हाथ पकड़ कै चाल्लांगे