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इरशाद / बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा ‘बिन्दु’

इरशादर कहियेगा तो मैं कुछ बोल दूँ
चेहरे पर लगा पर्दा उसे मैं खोल दूँ।
घबराने की बात अब मैं नहीं करता
नाम वाले को मैं इक रत्ती से तोल दूँ।
फर्जी वाड़े में नाम बहुतों का हो रहा
आप ही कहो मैं उसका क्या मोल दूँ।
कहने भर के समाजवादी बन गये
लकड़ी के जैसा लगता है छोल दूँ।
गद्दारों को मैं नहीं छोड़ने वाला
लगता है पकड़ कर फांसी में झोल दूँ।
इंसान को तमाशा रख दिया बनाकर
उसके जीवन में लगता जहर घोल दूँ।