Last modified on 29 जून 2010, at 13:09

इल्तिज़ा / रेणु हुसैन

जब तक हम थे तन्हा
थाम रखा था हमने अपने
भीतर का तूफ़ान

अब जब मिल गए हो तुम
तो दर्द के इस दरिया को
बह जाने दो
सागर में मिल जाने दो
कहीं कोई साहिल तो होगा
इसको भी मिल जाएगा