इश्तहार के इस नए युग में
अख़बार में छपकर जीना पड़ता है
चाहे शास्त्रीजी हों
चाहे जनरल चौधरी
चाहे रक्षामंत्री चह्वाण
रचनाकाल: १७-१०-१९६५
इश्तहार के इस नए युग में
अख़बार में छपकर जीना पड़ता है
चाहे शास्त्रीजी हों
चाहे जनरल चौधरी
चाहे रक्षामंत्री चह्वाण
रचनाकाल: १७-१०-१९६५