Last modified on 17 अगस्त 2020, at 21:58

इसी दुनिया में / रमेश ऋतंभर

मेरा होना
इसी दुनिया में निर्भर करता है
इस दुनिया के बाहर नहीं
जब मैंने आँखें खोलीं
तब किसी दूसरे की गोद में
अपने को पाया
दूसरे के हीं हाथों मेरी नार कटी
दूसरे के हीं हाथों
मेरा जातकर्म-संस्कार हुआ
मैं अपनी माँ के दूध पर नहीं
दूसरों की दूध पर पला
मुझे चलना दूसरों ने ही सिखाया
मुझे स्लेट पर लिखना
जिस मास्टर ने सिखाया
उसका भी मेरे कुल-गोत्र से
कोई सम्बन्ध नहीं था
अपनी ज़िन्दगी के सबसे कठिनतम दिनों से
जब मैं गुजर रहा था
तब मुझे दूसरों ने ही सहारा दिया
दूसरों ने ही मेरी भूख-प्यास मिटाई
मेरे होने में
दूसरों के प्यार, पानी और प्रार्थना का हाथ है
मेरा कुछ नही
मेरा होना
इसी दुनिया पर निर्भर करता है
इस दुनिया के बाहर नहीं।