इसी बिन्दु पर मुझे बने रहना था।
तुम्हारा लौटना,
तुम्हारा जाना,
और फिर-फिर लौट आना — इस गति के स्थायित्व ही में
खोजना था मुझे अपने अस्तित्व का स्थिरतम क्षण! कहना
था: तुम लौट आओ, तुम चली जाओ। बार-बार इस वाक्य
को दोहराना था। उसकी लोच पर सोचना था।