चाहता हूँ उसी शून्य से करूँ शुरुआत
जहाँ हम नहीं हों
हमारी उपस्थिति का अहसास मात्र हो
हो हमारी गंध और
सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारा प्रतिबिंब
शुरुआत हो उसी विजन से
जहाँ बेशुमार हो आबादी
खचाखच भरे लोग
कि जैसे इस महानगर में
एक छोर पर करते हैं गुप्तवास
एक नामालूम कवि
और दूसरी छोर पर
अविदित एक कवियत्री
दोनों रहते हैं इसी शहर में ।