इस झोंपड़ी में इतनी जगह शेष है कि
बीस व्यक्ति खड़े रह सकें यहाँ आकर
मगर इसके वीरान हाहाकार में
मैं किसी को आने नहीं देना चाहता
फिर भी आ ही जाता है कोई न कोई
सूखी घास सरीखी मेरी इच्छा को कुचलता हुआ
कोई भी आ जाता है कोई भी दाना ढ़ूँढ़ती चींटी
सूनी गाय भटकता कुत्ता
मुझे हिचक होती है उनसे मना करने में
यही है अनंत मामलों में मेरे चुप रहने की वजह