मोबाइल पर माँ की आवाज़ आती है कि
जल्दी कमरे लौट जाओ
और हमें पता चलता है कि
फिर कहीं बम धमाके हुए हैं
हालाँकि सबकी आदत हो चुकी है
धमाकों की ख़बर को दूसरी दीगर ख़बरों के साथ सजाने की
फिर भी जल्दी लौट आते हैं
दोस्तों के साथ बातचीत होती है
बातों मे धमाके पीछे छूट जाते हैं
बात होती है शहर की
शहर में कहाँ कैसी मटरगश्ती की की
शहर कितना अच्छा या बुरा है की
धमाके होते रहेंगे
जैसे बस या ट्रेन दुर्घटनाएँ होती हैं
जैसे लंबे समय तक जहाँ जंग चल रही है
ऐसे इलाकों में होती रहती हैं वारदातें
आदमी को आदत हो जाती है मौत की
जैसे हत्यारों को आदत पड़ जाती है हत्याओं की
माँओं के फोन आऐंगे और हम सुनेंगे
जैसे सुनते हैं रिश्ते मे किसी की शादी की बात
हालाँकि सावधानी की रस्म निभाऐंगे
और जल्दी कमरे लौट जाएँगे
कविता गीत ग़ज़लों का स्वर होगा धीमा
जैसे धमाके और मौत पर अब रोया नहीं जा सकता
जैसे दूसरे दिन अख़बार में आई रोते हुए औरत की तस्वीर
एक बच्चे की तस्वीर जैसी है
जिसका खिलौना टूट गया है
और हँसते हैं हम यह देखते
कि रोता बच्चा कितना सुंदर है
एक दिन हँसेगे हम
पास पड़ी लाशों को देखकर
इस तरह मरेंगे हम