Last modified on 18 जून 2015, at 16:16

इस देश में / प्रकाश मनु

इस देश में
गरदन
सीधी करके चलने
की हर कोशिश गुनाह है-

गुनाह है यहां पुलिया पर
रोज रोज मार खाए, लाठी खाए
भूख और जंग खाए चेहरों का
एक साथ बैठना
और सामूहिक झल्लाहट में
मिलकर रो लेना-
जार-जार आंसुओं में!

रोना-
कमजकम फूट-फूटकर रोना
गुनाह है इस देश में-
क्योंकि रोना विद्रोह की शुरुआत है

जब चार लोग जुड़ें
रोते ही हैं
इसलिए सरकार चौंकती है
जब सरकार चौंकती है
कुछ न कुछ होता ही है

अजीब शै है/हमारा गणराज्य
कोई नहीं जानता
कब/कहां से आकर
टंग जाएं
लाठियां हवा में
और शुरू कर दें
गालियांे के मंत्रोच्चार:

-कि दूर हट, ओए दरिद्दर के पुत्तर!
दूर...
खबरदार!
कल यहां कोई भी फटीचर
नजर न आए
(टीचर अलबत्ता दरियों पर बैठ जाएं)
वरना हमारे प्रियदर्शी प्रधानमंत्री को
बुरा लगता है!

छोड़ दो सड़कें
छोड़ दो मकान
पार्क, काफी हाउस, राजपथ उद्यान-
फिलहाल तुम्हारे वास्ते
नाली के किनारे वाली गंदगी की काफी है!

जब तुम सोओगे
मार खाकर
रात नींद में
उतरेगा परजातंतर-पुचकारेगा!
तुम्हें गुड़ियाघर ले जाएगा
बुढ़ियाघर ले जाएगा
कलाबत्तू खिलाएगा
कैबरे दिखाएगा
तेज रोशनियों में
पलक झपकते
मादरजात नंगा हो जाएगा
नहीं-
बहस मत करो/कि बहस से चीजें बिगड़ती हैं
(तुम तो सिर्फ देखो आंखें फड़फड़ाकर)
देखो ये भट्ठियां हैं/भट्ठियां हैं हर तरफ
लाल दहकती भट्ठियां हैं कैसी खूबसूरत
जो आदमी को हड्डियों तक
भून डालती हैं
-तुम्हें एक से दूसरे में
गिरना है
और इसी को जिंदगी समझना है।

बेहतर है कि जिंदगी का
एक उसूल बनाओ
हाथ बांधे
नाक की सीध में चलो
(जहां जहां खतरा हो-
वहां से टला)
पीछे आते खाकी लाठियों के जत्थे को
मुड़कर देखना-
परेशान होना मना है

सिर पर लटकती नंगी तलवारों/के खौफ
से सिहर कर
यकायक
चीख पड़ना मना है!!

यह पालतू स्वार्थों की
संसद है-
यहां ताकना/झांकना मना है
यह खास लोगों की खासमखास
क्रीड़ाओं का

चोर दरवाजा है-
यहां
भौंकना भांकना बांकना मना है
(बांकना क्या माने कबी जी!)

यह देश-
यह पूरा महादेश
एक अंधी गुफा
एक अंधा भागलपुर है-
तुम्हीं नहीं समझे यह बात
जब टटोलते हो
लाचार उंगलियों से-
क्या फायदा?