इस भीड़ में हर शख्स
आग भड़काने आया है
देते नहीं रस्ता उसे जो
आग बुझाने आया है...
कड़ी धूप में अचानक
बादल निकल आया है
गैरों की भीड़ में कोई
अपना निकल आया है...
रोते रोते हँस दिया
क्या याद आया है
रात के बाद दिन है
ये समझ में आया है...
कितनी ही भूल करीं
हर बार अपनाया है
वो परवरदिगार ही
अंत में काम आया है...