नित्य आत्महत्या करती हैं
इच्छाएँ सारी
आय अठन्नी खर्च रुपैया
इस महँगाई में
बड़की की शादी होनी है
इसी जुलाई में
कैसे होगा ? सोच रहा है
गुमसुम बनवारी
बिन फ़ोटो के फ़्रेम सरीखा
यहाँ दिखावा है
अपनेपन का विज्ञापन-सा
सिर्फ़ छलावा है
अपने मतलब की ख़ातिर नित
नई कलाकारी
हर पल अपनों से ही सौ-सौ
धोखे खाने हैं
अंत समय तक फिर भी सारे
फ़र्ज़ निभाने हैं
एक अकेला मुखिया घर की
सौ ज़िम्मेदारी