Last modified on 28 जनवरी 2009, at 14:00

इस हजूम में / सरोज परमार


इन तनी हुई मुठ्ठियों में
मुद्दे नहीं हैं
सहज भरी है हवा
पताकाओं की ऊँचाई से
मत लगाओ कयास जश्न का
इस हजूम में ज़्यादा हैं बछड़े
इन्हें इल्म हो गया है
सियासती रिवाज़ों का