यह बुर्जुआ समाज
बुर्जुआ लोग,
बच इनसे
देंगे सँक्रामक रोग !
जिनका छद्म
उधड़कर
झूल रहा
पूरा-पूरा,
यही वक़्त है
तोड़ताड़ सब
इनका तनपूरा,
खिखियाकर मुक्कों से
कब तक
पीटेगा विवेक का माथा
करने नए प्रयोग !
किसे पड़ी है
क्या कुछ है
उस पार अन्धेरे के,
हवा दचक्के मारे
हिलते
खूँटे डेरे के,
इस हमाम में
सब नँगे हैं
ज़बरन जँघा-पीट मची है
तने अज़ब दुर्योग !
यह बुर्जुआ समाज
बुर्जुआ लोग,
बच इनसे
देंगे सँक्रामक रोग !