Last modified on 9 जनवरी 2012, at 01:32

ईश्वरानंद / पुष्पिता

मैं तुम्हारे प्रेम का धान्य हूँ
और तुम
हृदय का विश्वास

तुम्हारी स्मृति-कुठले में
संचित उपजाए अन्न की तरह हूँ
अपनी अंत:सलिला में
रूपवान मछली की तरह
तैरने देना चाहते हो मुझे ।

तुम जीना चाहते हो मुझ में
प्रेम का सौंदर्य
और मैं पाना चाहती हूँ
सौंदर्य-सुख !

जीवन का विलक्षण आनन्द— प्रेम
धर्म के लिए ईश्वरानंद है जो ।