Last modified on 2 अक्टूबर 2016, at 08:22

ईश्वर / चिराग़ जैन

मैंने देखा-
मूसलाधार बारिश में
भीग रही थी
ईश्वर की मूर्ति।
मैंने सोचा-
थपेड़े भी सहती होगी
गर्म लू के
इसी तरह!
मैंने महसूसा-
सर्दी-गर्मी-बरसात
नंगे बदन
कैसे खड़ा रहता है परमात्मा!
…और तब मैंने चाहा-
काश, कोई इसकी भी सुने!