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ईश्वर एक सुन्दर आदमी या औरत / अनुक्रमणिका / नहा कर नही लौटा है बुद्ध

धरती पर दौड़े हैं कभी अतिकाय भयावह जन्तु
मानव ने जन्म लेते ही पायी हिंस्र अनुदार धरती
बहती हवाएँ तो अन्देशा होता किसी अलौकिक ध्वंस लीला का
थमती हवाएँ तो डर होता कि कोई ख़ँखार क्षण आने को है

जाने कब से हवाएँ बही हैं उखाड़तीं गाँव शहर जंगलात
सोचने पर लगता है दुःखों का लावा बहा हमेशा ही प्रबलतर
सुखदायी नदियों की तुलना में

समुद्र ने निगला कई बार अनगिनत प्राणियों को बिना जात-पाँत की परवाह किए
इस तरह मानव ने गढ़ीं अलौकिक कथाएँ
सृष्टि के पहले क्षण से आज तक को समझने में लाचार ख़याल
बने शब्द सुन्दर अद्भुत कल्पनाओं के
नाद, नृत्य, नाटकों में दुःख और आतंक से कभी जूझता कभी छिपता मानव

कहना मुश्किल कि ठीक कब किसने सोचा कि
भय से भी मिलता है लाभ
बशर्ते अपने भय को छिपा सकंे दूसरों के भय को बढ़ाने में
इस तरह बनते चले देव देवियाँ

जिसको जहाँ यह रहस्य समझ में आया, गढ़ा उसने एक और नया ईश्वर
पानी पत्थर पहाड़ हर कुछ तबदील हुआ
आतंकमय अलौकिक सपनों में
हारता हुआ आदमी उठता रहा लगातार लड़ता रहा आतंक के खि़लाफ़
और समान्तर गढ़ी गईं प्रेम कथाएँ
रचनाएँ जिनमें ईश्वर बना एक कमज़ोर प्रेमी
सशरीरी या अशरीरी कैसा भी

जवानी में दुनिया बदलने की कोशिश में थक चुके
प्रबुद्ध जन कई उम्रदराज़ होते ही कहने लगे कि जगह चाहिए इन कथाओं को
महज़ कथाओं की तरह
और ग़ायब नहीं हुईं आतंक फैलाने की भयंकर कोशिशें कभी भी

यह चुनाव हमारा है कि कब तक हम बचा सकते हैं खु़द को थकने से
कब तक झूमते हुए किसी सूफ़ी की दरगाह पर
याद रख सकते हैं कि यह उल्लास महज़ कथा नहीं एक विद्रोह है
और हम उसमें शामिल हैं

यह एक लम्बी यात्रा है
जिसमें धरती हमें जगह देती है
अपने विशाल सीने में
जब बच्चों को सुनाते हम तारों नक्षत्रों की सच्ची कहानियाँ
जो यन्त्रों के जादू नहीं हमारे तय खेलों
और गणित की अनोखी जादुई सी लगती पर सच में कविताओं जैसी धारणाओं से
हमें मिलती हैं
और बड़ों से कहते हम कि झूमते रहो
मुनाफ़ाखोरों की जंगों और नफ़रत के खि़लाफ़
बनाते रहो चित्र जिनमें ईश्वर है एक सुंदर आदमी या औरत
वैसी ही चाहतों के धागे बुनता
जैसी हमारी आपस में जुड़ी उँगलियों में स्पन्दित होती हैं।