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ईश्वर नित्य प्रसन्न-वदन / हनुमानप्रसाद पोद्दार

(राग चन्द्रकोश-ताल कहरवा)
 
ईश्वर नित्य प्रसन्न-वदन हैं, स्थित निज नित्य स्वरूपानन्द।
प्रेमीजन भी तद्वत्‌‌ नित करते आस्वादन रस-‌आनन्द॥
प्रभुका हर मंगल-विधान उनको करता अनुपम सुख-दान।
हँसते रहते नित्य इसीसे वे प्रभु-विश्वासी मतिमान॥
मनका यह प्रसाद नित रखता उनके मन-शरीरको स्वस्थ।
प्रभु-आनन्द रूपमें स्थित रहते, होते न कभी प्रकृतिस्थ॥
निर्मल यह प्रसन्नता करती नित्य विशुद्ध ज्ञान-विस्तार।
फैलाते प्रसन्नता अविरत फिर वे दूर-दूर अविकार॥
करते प्रभु उनके अति निर्मल सुखमय मनमें नित्य निवास।
अतः छिटकता रहता उनके जीवन से नव-नव उल्लास॥
जिधर निकल जाते वे प्रभुके सदानन्दमय हँसमुख दास।
हो जाता आनन्द-ज्योतिका वहाँ विमल तत्काल विकास॥