(राग पटदीप-ताल त्रिताल)
ईश-विरोधी धर्म-विरोधी भाव जायँ सब भाग।
माँ सुलगा दो हृदय देशमें श्याम-विरहकी आग॥
सबकी सेवामें हो, सबकी उन्नतिमें अनुराग।
पर अवनति-अपकार अशुभका जीवनमें हो त्याग॥
ईश-विरोधी वस्तुमात्रमें मनमें रहे विराग।
सदा रहे आनन्द-शान्ति शाश्वत, हो शुचि बड़भाग॥
ज्योतिर्मय हो जीवन सारा, मिट जाये जग-राग।
प्रभु-पद-प्रेम पुनीत शीघ्र हो उठे मधुरतम जाग॥