♦ रचनाकार: ईसुरी
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तुमखों देखौ भौत दिनन सें
बुरौ लगत रओ मन सें
लुआ न ल्याये पूरा पाले के
कैबे करी सबन सें
एकन सें विनती कर हारी
पालागन एकन सें
मनमें करै उदासी रई हों
भई दूबरी तन सें
ईसुर बलम तुमइये जानौ
मैंने बालापन सें।
भावार्थ
इस चौघड़िया में ईसुरी रजऊ की व्यथा को व्यक्त कर रहे हैं। देखिए — आज तुम्हें बहुत दिनों में देखा, मन में बहुत बुरा लगता था। मैं पास-पड़ोस में सबसे कहती थी, लेकिन मुझे कोई लिवा कर नहीं लाया। किसी से विनती करती, किसी के पैर पड़ती लेकिन मैं हार गयी। मन से उदास रहती थी सो तन से भी दुबली हो गयी हूँ। मैंने तो बचपन से ही तुम्हें अपना प्रियतम जाना है।