♦ रचनाकार: ईसुरी
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ऐसी हती रजउ की सानी
दूजी नईं दिखानी।
बादशाह कै बेगम नइयाँ
ना राजा घर रानी।
तीनऊ लोक भुअन चौदा में
ऐसी नईं दिखानीं।
ईसुर पिरकट भईं हैं जग में
श्री वृषभान भुबानी।
भावार्थ
महाकवि 'ईसुरी' का अपनी प्रेयसी 'रजऊ' से मिलन नहीं हो पाया। इस वियोग में 'रजऊ' के रूप की प्रशंसा करते हुए वे कहते हैं — मेरी 'रजऊ' की ऐसी शान थी कि उसके जैसी दूसरी नहीं दिखाई दी। बादशाह की बेगम और राजा की रानी भी वैसी नहीं हो सकती। तीनों लोक और चौदह भुवनों में भी ऐसी कोई नहीं दिखती।
ऐसा लगता है मानो रजऊ के रूप में वृषभान कुमारी यानि राधा जी ही प्रकट हो गई हैं।