Last modified on 23 अगस्त 2012, at 17:01

उकताया रामलाल / लालित्य ललित


छोटी-छोटी
खुशियों को समेटता
निम्न मध्यम वर्गीय आदमी
छुट्टियों में अपने को राजा
पत्नी को रानी
और बच्चों को
राजकुमार-सा
अनुभव करवा लाता है
चार रात, पांच दिन के
पहाड़ी दौरे से
लौटता है तो वही
क्लर्कीं
वही दकियानूस लोग
वही ‘थर्ड क्लास’ नेचर
वही नाक पोंछते बच्चे
वही
जनता लैट में रहने वाले
की
अदाएं देख
रामलाल उकता गया है
वह नहीं चाहता की
इस वातावरण को और
ज़्यादा झेले
लेकिन मजबूरी में
टिका है आम आदमी
अपनों के बीच
खुशियां तलाश रहा है
अरे !
सोनू के पापा
पानी फिर चला गया
ज़रा
देखो तो
ये गुप्ता जी बड़े ढीठ है
अपना पाइप
हमारी टंकी में लगा -
लेते हैं
चाहे कोई
कित्ता ही परेशां हो
और मैं चल पड़ा
गुप्ता से युद्ध करने
पीछे-पीछे बच्चों
की फौज
‘लाइव’ टेलीकास्ट का अनुभव
अपनी माताश्री को सुनाने के -
लिए
इस तरह की घटनाएं
हर प्रदेश, हर उस
कॉलोनी के
जनता लैट की हैं
जहां मेरे जैसे
डुप्लेक्स के सपने पालने
वाले
अनगिनत दुबे जी
रहते हैं
‘अरे सब्ज़ी नहीं लानी
है’
और ‘क्या दूध लेने
मैं जाऊंगी ?’
ऐसे प्रेम-रस में
डूबे वाक्य हम
निम्न मध्य वर्गीय
सतत संघर्षी लोगों को ही
मयस्सर हैं
इस्कान या
‘आर्ट ऑफ लिविंग’ में
डूबे
इलीट क्लास को नहीं
समझे
इडियट !