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उक्ति /राम शरण शर्मा 'मुंशी'
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राम शरण शर्मा 'मुंशी'
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तोड़ो नहीं तार
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अनलिखे अक्षर बहुत
दीखे
बोल अनबोले बहुत
सीखे
भरे घट पाए कई
रीते
पनप भी पाए न हम
बीते