10
जब भी दर्द
हद से गुजरता
और न सहे
मन चीत्कार करे
कोई सुने, न सुने ।
11
ठोकर लगे
अपनों की बेरुखी
मन को डसे
फिर भी चुप सहे
घास बन के जिए ।
12
मैंने था मारा
भीतर का रावण
पिछली बार ;
फिर झाँका तो पाया
रावण मरा नहीं ।
13
उगता सूर्य
जानता है नियति
डूब जाएगा;
फिर नई ऊर्जा ले
रौशनी लुटाएगा ।
14
हरसिंगार
झरे मुस्काते हुए
थे इसी वास्ते
खुशबू फैला गए
किसी काम आ गए ।
15
तूने ही मुझे
मुझसे मिलवाया
जीना सिखाया;
दुनिया से हार क्यूँ
खुद हुआ पराया ?
16
आँखों में नमी
चेहरे पे मुस्कान
देख के जाने
दिल का सब हाल
दोस्त की पहचान ।
17
हिसाब रखो
खुशी भरे पलों का
दुःखों का नहीं
अँधेरों से ज्यादा
रौशनी भली लगे ।
18
कितने काटे
घने दरख़्त, वन
रहने भी दो
ज़मीं पे घास ही को -
हरियाली का भ्रम ।