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उग आये ढाई आखर हैं / कुमार रवींद्र

तुमने छुआ
देह में, सजनी
उग आये ढाई आखर हैं
 
कनखी-कनखी
पहले तुमने हमें दुलारा
मुस्की-मुस्की
महारास का मन्त्र उचारा
 
छुईं उँगलियाँ
सखी, तुम्हारी
लगा, किसी पंछी के पर हैं
 
भीगी साँसें
हम बरखा के मेघ हो गये
हुए इन्द्रधनु
फिर बिजुरी की तेग हो गये
 
गूँज रहे
साँसों-साँसों
भीतर बजते वंशी के स्वर हैं
 
कल्पवृक्ष के तले खड़े
हम दोनों इस पल
इच्छाएँ हो रहीं हमारी
पहली कोंपल
 
परस हमारे
जो थे कोरे
सुनो, नेह के हस्ताक्षर हैं