मैं काशी का रहने वाला, उचकू मेरा नाम,
सदा मिठाई मैंने खाई, दिया न एक छदाम!
पेड़ा, बरफी और जलेबी खाए हैं भरपूर,
रबड़ी, पेड़ा, बड़ी इमरती, लड्डू मोतीचूर!
पढ़ी पोथियाँ मैंने गुरु से छोटी-बड़ी तमाम,
पंडित बनकर घर आया हूँ करने को आराम!
यहाँ बैदकी करके अब मैं पाऊँ सबसे मान,
टके कमाकर घर बनवाऊँ पक्का आलीशान!
-साभार: बालक, दिसंबर 1920, 379