Last modified on 23 नवम्बर 2010, at 02:24

उजाले की ओर / शरद चन्द्र गौड़

गुम हो जाते हैं उजाले
गहरी अँधेरी रातों में
एक दिया तो जलाओ

भटक जाते हैं मुसाफ़िर
अनजानी राहों में
एक हम-सफ़र तो बनाओ

जंग लगी नौकर-शाही का
भ्रष्टाचार देखकर
ऐ क़लम के सिपाही
क़लम तो उठाओ

बहाते हैं ख़ून, बेगुनाहों का
साम्यवाद-माओवाद के नाम पर
कोई कार्ल मार्क्स का एक रूक्का
इनको पढ़ कर तो सुनाओ

उजड़ी माँग, बिलखती माँ, यतीम बच्चे
कोई इन्हे इन्सानियत तो सिखाओ
कोई इन्हे इन्सानियत तो सिखाओ