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उज्जर अंजोर / राम सिंहासन सिंह

ओ मानव! तू मानव-कुल के कर्तब्यों के ध्यान करऽ
मानवता के सुभ मूल्यों के तू सच्चा पहचान करऽ
भौतिकता के चकाचौंध में काहे अपन पथ भूल गेल
पी के महामोह के मदिरा में तू भूलो में भूल गेल
सत्यं-सिवं-सुन्दरम् पथ पर जीवन के संधान कर
अन्यायों-अत्याचारों पर तू हरदम अपना वार कर
कहेके तो सब कहऽ हे पर मानवता के भोर न हे
सत्य न्याय सेवा संयम के अब उज्जर अंजोर न हे
मानवता के बिना विस्व में मानव के सिंगार कहाँ हे
जिसमें हो झंकार न स्नेहिल वह कोमलम तार कहाँ हे
उठ लोकमंगल के हीत में अमरीत न, तू विषपान कर
बयथित हो रहल भारतमाता ओकर करुन पुकार सुन
आर्य संस्कृति जान मंगइतऽ हे ओकर हाहाकार सुन
तू मानव ह, मानवता के उज्जवल नवल विहान सुन।।