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उड़ने की हुलस / चंद्र रेखा ढडवाल


उड़ने की हुलस लिए फ़ाख़्ताओं ने
फ़र्श से छत तक
इस दीवार से उस दीवार तक
भाँप लिया कमरे को
पर नीचे से ऊपर
दाँए से बाँए
उड़ती रहीं वे
हाँप-हाँप कर थक जाने तक
पंखों के नुच जाने तक