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उतर गया मौसम / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

मन की हर गली में
उतर गया मौसम
खुशबू का इक दरिया
भर गया मौसम।

पात टूटे,लोग रूठे
पड़ गए सब कौल झूठे
सुरभि चुपचाप द्वारे
धर गया मौसम।

उतर आईं नील नभ से
रोम सहलाती हवाएँ
तपोवन में दूर जैसे
तैरती रह-रह ऋचाएँ ।

विहंगों के गूँजते स्वर
हर एक तरुवर को मुखर
कर गया मौसम।
-0-(9 मार्च 1989)