मैं ही करूँगी वहन
योगक्षेम तुम्हारे कर्मों का
कारण हूँ इसलिए नहीं
इस लिए कि तुम्हें प्यार करती हूँ
तुम नहीं ही करते नहीं कहती
पर उतना ही कि उत्तरदाई मैं ही ठहरूँगी
हर उस साँस के लिए जो तुम लोगे
तुमने क्या दिया नहीं जानती
पर म्मैम्ने चाहा था
कि मेरे माथे पर होंठ तुम्हारे
मंदिर की दहलीज़ पर फूलों-से चढ़्ते
मस्तक नहीं हुआ मेरा मन्दिर की देहरी
या फूल तुम्हारे होंठ नहीं
क्या कहूँ
पर चाह मेरी ही थी
वहन मैं ही करूँगी योगक्षेम
तुम्हारे कर्मों का