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उत्तरायणी / रचना उनियाल

पावक पावन पारायण ये, अचला को किरणों का दान।
सौर मास के अयन गमन में, सूर्य करें शनि गृह प्रस्थान॥

दिवस भान का आँचल पसरा, क्षणदा करती क्षण भर बात।
चातक के सुर लुप्त हो गये, कोयलिया के स्वर हैं सात॥
धरती अंबर के यौवन पर, धवल वर्ण की है बरसात।
मेला रंगों का है लगता, मदन नयन देता सौगात॥
तिमिर भागता रवि बिंबों से, ग्रीष्म भोर का यह सम्मान।
सौर मास के अयन गमन में, सूर्य करें शनि गृह प्रस्थान॥

गंगाधर का भागीरथ को, माँ गंगा का दे उपहार।
भीष्म पिता की प्राण प्रतीक्षा, से खुलता उत्तर का द्वार॥
मैय्या ने कर व्रत आराधन, कान्हा से पाया संसार।
नारायण ने सुला दिया फिर, दुष्ट भाव असुरों मंदार॥
भिन्न-भिन्न हैं कथा दिवस की, उत्तरायणी का जयगान।
सौर मास के अयन गमन में, सूर्य करें शनि गृह प्रस्थान॥

दक्षिण से उत्तर को जोड़े, भारत भू संस्कृति का गात।
खिचड़ी खायें उत्तर वासी, दक्षिण में पोंगल प्रज्ञात॥
गुजराती हो राजस्थानी, सजे व्योम शतरंज बिसात॥
बिहू, लोहड़ी, संक्रांति, नगों, एक नाम के जवाहरात॥
महाराष्ट्र में गन्ना तिल में, अर्क पर्व का बसे विधान।
सौर मास के अयन गमन में, सूर्य करें शनि गृह प्रस्थान।

नमन करें तन ऋषि मुनियों को, दिया हमें विज्ञानी योग।
जोड़ा भारत का हर कोना, कह कुदरत का कर उपभोग॥
धरती, पर्वत, नदियाँ तेरी, रखना इनको सदा निरोग।
भानु देव प्राणों के दाता, हुआ भाग्य से यह संजोग॥
कृपा सिंधु तुम देवा रहना, प्राण मात्र के कृपानिधान॥
सौर मास के अयन गमन में, सूर्य करें शनि गृह प्रस्थान।