आतप, वर्षा, शीत सहा, तत्पर की काया।
माली ने उद्योग किया उद्यान सजाया।
सींच सोहने सुमन-समूहों को विकसाया।
सेवन किया सुगंध, सुधा-रसमय फल खाया।
पर मूल्य कहाँ उसने लिया,
कोकिल, बुलबुल, काक से।
वे भी स्वतंत्र सुख से बसे
फल खाए, गाए हँसे।
आतप, वर्षा, शीत सहा, तत्पर की काया।
माली ने उद्योग किया उद्यान सजाया।
सींच सोहने सुमन-समूहों को विकसाया।
सेवन किया सुगंध, सुधा-रसमय फल खाया।
पर मूल्य कहाँ उसने लिया,
कोकिल, बुलबुल, काक से।
वे भी स्वतंत्र सुख से बसे
फल खाए, गाए हँसे।