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उदास मौसम / बाल गंगाधर 'बागी'

पसीने से अभिलाषा बह न सकी है
ढली शाम मुझसे कुछ कह न सकी है
उठो उनकी आंखों में एक बार देखो
जिन बच्चों के मुंह में निवाले नहीं हैं

सदा फुटपाथ गाड़ियों के धुओं में उनकी
बसेरा है नालों की पटरियों पे जिनकी
परत दर परत मैल बदन पर है जिनकी
क्यों फटे चीथड़ों में बंद जुबानें हैं उनकी

क्यों नहाते हैं बच्चे, उनके जमें पानी में?
गंदगी से कैसे है, उनकी मुठभेड़ होती
यूं बचपन जवानी की, शाम में है ढलता
जब आंसू की ममता है, नालों में गिरती

मरते बच्चे नालों के दलदल में जाकर
माँ बाप मरते हैं कूड़े के ढेर में जाकर
जिन्दगी उनकी क्यों घुटती रहती है
हर रात मौसम की, सदी सी है कटती

मच्छर उनके तंबू में बसेरा लेते हैं
कुपोषित खून पीकर शरीर बनाते हैं
नालों का वास उनका नाक चीरता है
बारिश में उमड़कर भूचाल मचाता है

नदियों के बाढ़ में गांव बह जाते हैं
क्यों नाले जीवन में तूफान आते हैं?
शहरी गंदा पानी, पानी उतार लेता है
उनकी क्यों झोपड़ी को, उजाड़ बहा देता है?

हम नहीं मिटे मगर, जमाना बदल जाने से
जिंदगी की जंग में उनके आजमाने से
मां के पेट से तो पैदा अछूत होते नहीं
पर नीच समझे जाते हैं, दलित के घराने से