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उद्गार / ज्योतीन्द्र प्रसाद झा 'पंकज'

फूलों पर पग धरने में क्या
वह तो अतिशय सुकर सरल
शूलों पर चलना दुष्कर है
व्रती अचंचल वहाॅं सफल।

तरल मोम सा हो सकता है
सुख से पुलक पूर्ण जीवन
कुंदन उसे बनाता लेकिन
केवल पीड़ा का अंजन।

रुनझुन रुनझुन कर बजती है
नहीं जवानी की पायल
छिन्न शिरा के छूम-छनन में,
वह लहराती है अविकल।

रुकने वाला हार चुका है
मंजिल पर ही क्यों न रुके
अविरत चलने वाला विजयी
भले राह में चरण थके।

वह पीयूष गरल ही है
जो जीवित को मृतवत कर दें
उससे तो सौ बार भला जो
कालकूट जीवन भर दे।