मोहित करती है
वह तस्वीर
जो बसी है रग-रग में
डरती हूँ
कि छू कर उसे
मैली ना कर दूँ
हरे पत्तों से घिरे गुलाब की तरह
ख़ूबसूरत हो तुम
पर इसकी उम्मीद नहीं
कि तुम्हें देख सकूँ
इसलिए
उद्धत भाव से
अपनी बुद्धि मंद करना चाहती हूँ।
मोहित करती है
वह तस्वीर
जो बसी है रग-रग में
डरती हूँ
कि छू कर उसे
मैली ना कर दूँ
हरे पत्तों से घिरे गुलाब की तरह
ख़ूबसूरत हो तुम
पर इसकी उम्मीद नहीं
कि तुम्हें देख सकूँ
इसलिए
उद्धत भाव से
अपनी बुद्धि मंद करना चाहती हूँ।