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उद्धव ज्ञान / रंजना भाटिया

छुआ है अंतर्मन की गहराई से
कभी तुम्हारी गरम हथेली को
और महसूस किया है तब
बर्फ सा जमा मन
धीरे धीरे पिघल कर
एक कविता बनने लगता है
देखा है कई बार तुम्हारी आंखों में
सतरंगी रंगो का मेला
मेरी नज़रों से मिलते ही वह
सपने में ढलने लगता है
तब ......
यह भी महसूस किया है दिल ने मेरे
कि उलझी अलकों सी ,उलझी बातें
कुछ और उलझ सी जाती है
प्रेम के गुंथे धागे में
कुछ और गांठे सी पड़ जाती है
खाली सा बेजान हुआ दिल
और रिक्त हो जाता है
दिल के किसी कोने में
ख़ुद से ही संवाद करता
मन उद्धव ज्ञान पा जाता है !!