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उनके स्वर / विपिन चौधरी

तनी हुई मुट्ठी लिए
वे बढ़ रहे है,
क्षितिज के उस पार,
बगावत की
तयशुदा परिभाषा के साथ ।

अँधेरे और उजाले,
सच और झूठ,
भविष्य और वर्तमान,
सपने और हकीकत के बीच,
स्पष्ट भेद करते हुए ।

जीवन और मृत्यु,
प्रेम और जुदाई,
के बीच का विकल्प तलाशते हुए ।

जीने की उत्कट तलब लिए
ख़ामोशी की बुनी हुई पैरहन ओढ़े
शब्दों के सुगबुगाते अंगारे लिए ।

आख़िरी इमारत के ध्वस्त होने से पहले,
लड़ाई के प्रबल दाँव-पेंच लिए,
वे तमाम अवरोधों से टक्कर लें
तनी मुट्ठी के साथ
उतर आएँगे वे
यकीनन
सड़क के बीचों-बीच
सूर्यास्त से ठीक पहले ।