उनसे नैन लड़ाए हैं।
क्या-क्या धोखे खाए हैं।
इक पल ऐसा जुर्म हुआ,
जीवन भर पछताए हैं।
बाहों के घेरे टूटे, अब
बंधन सभी पराये हैं।
सदियों तक ग़मगीन रहे,
पल भर जो मुस्काए हैं।
जीवन के ग़म और ख़ुशियाँ,
बस तेरे ही साये हैं।
सरमाया-ए-इश्क़ हैं वो,
ज़ख़्म जो दिल पर खाए हैं।
अब दुनिया कि क्या चाहत?
तुमसे लगन लगाए हैं।
भूल गया ख़ुद को "साबिर"
जब भी याद वह आये हैं।