खेतों पर उन्नति के बादल
देखे-भाले हैं,
शहर गये मजदूर,
खेत सब
बैठे-ठाले हैं।
अम्मा दरतीं धान
कुनैता चावल नित उगले;
तंगी में भी पूरे घर को
खाने भात मिले;
अब तो अम्मा और कुनैता
दोनों नहीं रहे;
बैठक अपने सूनेपन का
किससे दर्द कहे;
हिरण-चौकड़ी गाँव भरे
गलियों में छाले हैं।
अमरूदों का बाग
सख्त पहरे में जकड़ा है;
रखवाले ने परसों ही
गोबर को पकड़ा है;
आम सिंघाड़े केले
कबसे बाँटे नहीं गये;
बनियागिरी बहुत अपनाई
घाटे नहीं गये;
नेताओं का खेत, गाँव
गायब रखवाले हैं।