उन्नीस सौ चौरासी
मेरी गली की
औरतें दुखियारी
विधवा हैं सारी
सब जी रही हैं ऐसे
मजबूरी में कोई
रस्म निभाए जैसे
मेरे ज़हन में
कभी नहीं सोती है
सारी गली रोती है
1985
उन्नीस सौ चौरासी
मेरी गली की
औरतें दुखियारी
विधवा हैं सारी
सब जी रही हैं ऐसे
मजबूरी में कोई
रस्म निभाए जैसे
मेरे ज़हन में
कभी नहीं सोती है
सारी गली रोती है
1985