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उन्होंने
मंदिर बनाकर
प्राणभृत्
अनन्त आकाश को
दीवारों में
सीमित किया
शायद इसलिए कि
नजर ना फट जाए
संपूर्ण आकाश को
ताकते ताकते
फिर उसमें
एक-दो झरोखे
भी बनाए
ताकि
आकाश के
कैद होने का
एहसास बना रहे
और
अनन्तता का
आवाहन
खुला रहे !
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उन्होंने
मंदिर बनाकर
प्राणभृत्
अनन्त आकाश को
दीवारों में
सीमित किया
शायद इसलिए कि
नजर ना फट जाए
संपूर्ण आकाश को
ताकते ताकते
फिर उसमें
एक-दो झरोखे
भी बनाए
ताकि
आकाश के
कैद होने का
एहसास बना रहे
और
अनन्तता का
आवाहन
खुला रहे !