पस्त हो गई हैं
हाथ की अँगुलियाँ
गाँठ की पर्त खोलते खोलते
अँगूठे
अब भी खड़े हैं
संघर्ष में सिर कटाए
आदमी का सिर
विध्वंस से बचाने के लिए
रचनाकाल: २५-११-१९६८
पस्त हो गई हैं
हाथ की अँगुलियाँ
गाँठ की पर्त खोलते खोलते
अँगूठे
अब भी खड़े हैं
संघर्ष में सिर कटाए
आदमी का सिर
विध्वंस से बचाने के लिए
रचनाकाल: २५-११-१९६८