याद आया
षड्यंत्रों में घिरा मेमने समान
वो मनुष्य!
संभवतः निर्दोष
या दोषी?
थे प्रमाण उसके विरूद्ध
कितना निरीह
कितनी कातर थी ध्वनि उसकी
साक्षी बनी मैं जिसकी
अट्टहास करता है समय
कदाचित ईश्वर भी
कहाँ बची मै
प्रणम्य उसकी?
याद आया
षड्यंत्रों में घिरा मेमने समान
वो मनुष्य!
संभवतः निर्दोष
या दोषी?
थे प्रमाण उसके विरूद्ध
कितना निरीह
कितनी कातर थी ध्वनि उसकी
साक्षी बनी मैं जिसकी
अट्टहास करता है समय
कदाचित ईश्वर भी
कहाँ बची मै
प्रणम्य उसकी?