दिसम्बरी अदीतवार
कोहरे में डूबा समूचा शहर
मैं तुम्हारी याद में
उधर कोहरे को चीर
आहिस्ता-आहिस्ता तैरती
आ रही है सोनल धूप
इधर मन के तालाब में
महकने लगा है कंवल
आंखों के आगे उभरने लगा है चांद …. !
दिसम्बरी अदीतवार
कोहरे में डूबा समूचा शहर
मैं तुम्हारी याद में
उधर कोहरे को चीर
आहिस्ता-आहिस्ता तैरती
आ रही है सोनल धूप
इधर मन के तालाब में
महकने लगा है कंवल
आंखों के आगे उभरने लगा है चांद …. !