रात उजलायी,
अँधेरे से कँटीले हो
सभी आकार उग आये।
सिहर कर पंछी पुकारे।
इधर लेकिन अबोली चुप
तुम्हारी व्यथा में मेरी व्यथा डूबी।
नयी दिल्ली, 19 जून, 1980
रात उजलायी,
अँधेरे से कँटीले हो
सभी आकार उग आये।
सिहर कर पंछी पुकारे।
इधर लेकिन अबोली चुप
तुम्हारी व्यथा में मेरी व्यथा डूबी।
नयी दिल्ली, 19 जून, 1980