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उमस / अज्ञेय

 रात उजलायी,
अँधेरे से कँटीले हो
सभी आकार उग आये।
सिहर कर पंछी पुकारे।
इधर लेकिन अबोली चुप
तुम्हारी व्यथा में मेरी व्यथा डूबी।

नयी दिल्ली, 19 जून, 1980